Tuesday, November 22, 2016

धर्म क्या हैं। (Story by Sukhdev Taneja)


ये सब सच्चे अनुभव पर आधारित एक घटना हैं। मेरे सभी articles सच्चे अनुभव पर आधारित होते है।


एक घर हैं। सभी बैठे हैं एक जगह पर। पँडित  हैं और माता का हवन हो रहा।  मेने देखा की हर साल हवन होता हैं। पँडित भी आते है। मंत्रो का जाप चल रहा हैं। शायद भगवान का ध्यान भी करते होंगे।


हवन खत्म हुआ और सब कुछ हुआ तभी उनको पता चलता हैं कि पड़ोसी का मोबाइल खराब हो गया है। और वो परेशान है।


फिर क्या था। सारे धर्म सारी अच्छाई सब शर्मशार होने लगी। पूरा परिवार जोर जोर से हंसने लगा जैसी की मन की मुराद पूरी हुई। ये एक बार नही हमेशा ही ये देखा की जब भी पड़ोसी पर कोई दुःख या परेशानी आई तो धर्म की बाते तो बहुत दूर।

उनको ओर दुखी और जलाने की कोशिश की जाते। और खुद वो बहुत ही धर्मिक समझते होंगे।


छत पर हनुमान का झण्डा और मोबाइल पर साई की रिंगटोन। क्या ये सब दुनिया को बताने के लिए है हम हनुमान भक्त हैं। क्या हवन कुण्ड सब घर की शुद्धि के लिए हैं जबकि मन तो ईर्ष्या रूपी जहर से भरा पड़ा हैं।


क्या ये कहानी सब घर की नही। जो लोग दूसरों के दुःख में आनंद का अनुभव करते हैं उनसे बड़ा कोई नासितक कोई और नहीै।


सच तो ये हैं आपको अपने मन को शुद्ध करने की सख्त जरूरत हैं। मै सभी लोगो से कहता हूँ की कोई जरूरत नही ज्ञान की या ध्यान की, या भक्ति की अगर आपका मन निर्मल नही कोमल नही। तो ये सब नाटक व्यथँ  हैं।

क्या छिप सकता है निरकारी भगवान से। अगर आपको ईर्ष्या में आनंद आता हैं। तो बंद करो ये सब दिखावा धर्मिक होने का।


सब बन्द करके सिर्फ अपने मन को शुद्ध करने का प्रयास करे। ये सही मायने में ध्यान और हवन हैं।

सुखदेव तनेजा की कलम से (It's just Beginning)

फिर हाजिर होंगे नये topics के साथ।

आप हमें ढूंढ सकते हैं यूट्यूब पर (Sukhdev Taneja के नाम से) 🙏

Saturday, July 16, 2016

आधुनिक सच


मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं


सुबह आठ बजे नौकरियों परजाते हैं
रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं

कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं

फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया'आंटी' को ही पहचानता है

दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है

यूनिफार्म पहनाके स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है

उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है

वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है

कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है

धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है

माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं

क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं

कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं :

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।
बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी, अपना घर संसार

Wednesday, September 23, 2015

सफल जीवन क्या होता है


एक बेटे ने पिता से पूछा – पापा ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है ?

पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए।
 
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था…

थोड़ी देर बाद बेटा बोला, पापा.. ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी…

पिता ने धागा तोड़ दिया ..

पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आइ और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई…
 
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया .,,,,
बेटा..
‘जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
जैसे :घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता आदि और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं… वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं.. इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ…’
“अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना..”
” धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही ‘सफल जीवन’ कहते हैं

Sunday, September 13, 2015

बड़ा ही महत्व है


ससुराल में साली का
बाग़ में माली का
होंठो में लाली का
पुलिस में गाली का
मकान में नाली का...
कान में बाली का
पूजा में थाली का
खुशी में ताली का
बड़ा ही महत्व है..........१

फलों में आम का
भगवान में राम का
मयखाने में जाम का
फैक्ट्री में काम का
सुर्ख़ियों में नाम का
बाज़ार में दाम का
मोहब्ब्त में शाम का
बड़ा ही महत्व है.........२

व्यापार में घाटा का
लड़ाई में चांटा का
रईसों में टाटा का
जूतों में बाटा का
रसोई में आटा का
बड़ा ही महत्व है.........३

फ़िल्म में गाने का
झगड़े में थाने का
प्यार में पाने का
अंधों में काने का
परिंदों में दाने का
बड़ा ही महत्व है..........४

ज़िंदगी में मोहब्ब्त का
परिवार में इज़्ज़त का
तरक्की में किस्मत का
दीवानो में हसरत का
बड़ा ही महत्व है.........५

पंछियों में बसेरे का
दुनिया में सवेरे का
डगर में उजेरे का
शादी में फेरे का
बड़ा ही महत्व है.........६

खेलों में क्रिकेट का
विमानों में जेट का
शरीर में पेट का
दूरसंचार में नेट का
बड़ा ही महत्व है.........७

मौजों में किनारों का
गुर्वतों में सहारों का
दुनिया में नज़ारों का
प्यार में इशारों का
बड़ा ही महत्व है...........८

खेत में फसल का
तालाब में कमल का
उधार में असल का
परीक्षा में नकल का
बड़ा ही महत्व है........९

ससुराल में जमाई का
परदेश में कमाई का
जाड़े में रज़ाई का
दूध में मलाई का
बड़ा ही महत्व है.........१०

बंदूक में गोली का
पूजा में रोली का
समाज में बोली का
त्योहारों में होली का
श्रृंगार में चोली का
बड़ा ही महत्व है........११

बरात में दूल्हे का
हड्डियों में कूल्हे का
रसोई में चूल्हे का
बड़ा ही महत्व है..........१२

सब्जियों में आलू का
बिहार में लालू का
मशाले में बालू का
जंगल में भालू का
बोलने में तालू का
बड़ा ही महत्व है........१३

मौसम में सावन का
घर में आँगन का
दुआ में दामन का
लंका में रावन का
बड़ा ही महत्व है..........१४

चमन में बहार का
डोली में कहार का
खाने में अचार का
मकान में दीवार का
बड़ा ही महत्व है.........१५

सलाद में मूली का
फूलों में जूली का
सज़ा में सूली का
स्टेशन में कूली का
बड़ा ही महत्व है...........१६

पकवानों में पूरी का
रिश्तों में दूरी का
आँखों में भूरी का
रसोई में छूरी का
बड़ा ही महत्व है...........१७

नल मेँ पाइप का
बेल्ट के टाइट का
वाहन मेँ बाइक काऔर आप के एक लाइक का
बड़ा ही महत्व है.

Monday, May 11, 2015

शुगर का इलाज


  • लहसुन छिला हुआ - 25 gms
  • अदरक सब्ज़ (ताज़ा) - 50 gms
  • पुदीना सब्ज़ (हरा) - 50 gms
  • अनारदाना खट्टा - 50 gms
इन चारों चीज़ों को पीस कर चटनी बना लें। और सुबह, दोपहर और शाम को एक-एक चम्मच खा लें। पुरानी से पुरानी शुगर, यहाँ तक कि शुगर की वजह से जिस मरीज़ के जिस्म के किसी हिस्से को काटने की सलाह भी दी गयी हो तब भी ये चटनी बहुत फायदेमंद इलाज है।

Sunday, May 3, 2015

चार बातें हमेशा याद रखो


पहली बात

हर इंसान इतना बुरा नही होता जितना वो पेन कार्ड और आधार कार्ड मैं दीखता है।
और इतना अच्छा भी नही होता जितना वो फेसबुक और वाटस एप पर दिखता है।

दूसरी बात

हर आदमी इतना बुरा नही होता जितना उसकी बीबी उसको समझती है 
और इतना अच्छा भी नहीं होता जितना उसकी माँ उसको समझती है।

तीसरी बात
हर आदमी अपनी लाइफ पार्टनर के बारे मैं सोचता है कि वो मिस यूनिवर्स दिखे 
और घर में काम शांता बाई की तरह करे।

चौथी बात

हर औरत अपने लाइफ पार्टनर के बारे मै सोचती है की वो अम्बानी तरह कमाए 
और व्यहवहार मनमोहन सिंह की तरह करे।

मंगल कामनाओ सहित समर्पित परन्तु कृपया मुस्कुरायें या हंसे नहीं।

किस्मत हो तो मोदी जी जैसी हो।
सवाल पूछने के लिए विपक्ष में
नेता नहीं और घर पर बीबी नहीं।

Friday, April 17, 2015

कुण्डलिनी क्या है ?

 

कुण्डलिनी क्या है? इसकी शक्ति क्या है, इसकी साधना, इसका उद्देश्य क्या है,

कुण्डलिनी-जागरण कैसे होते है और मनुष्य पर इस जागरण का क्या प्रभाव पड़ता है?
ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर वांछित है।

कुण्डलिनी साधना मनुष्य के आतंरिक रूपांतरण और जागरण की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

कुण्डलिनी जागरण का एक मात्र उद्देश्य है कि मनुष्य अपने आपको पहचाने, अपने जीवन को गहराई से समझे।

यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो मनुष्य को स्वयं अपने ही अस्तित्व के साथ करनी पड़ती है।

प्रत्येक मनुष्य के जानेंद्रिय के नीचे जहाँ से रीढ़ की हड्डी शुरू होती है, वहां एक चने के बराबर गड्ढा है जिसे कुण्ड कहते हैं। वही कुण्ड ऊर्जा का केंद्र है। इस कुण्ड का आकार त्रिकोण की तरह है । यहीं पर नाड़ियों का गुच्छा है जिसे योग में कंद कहते हैं।

इसी पर कुण्डलिनी सर्पिणी की तरह 3.5 चक्र की कुंडली मार कर , नीचे के ओर मुख करके, युगों-युगों से
बेखबर होकर गहरी नींद में सो रही है। जबतक यह सोई हुई है अज्ञान का मूल बनी हुई है।

कुण्ड में स्थित होने या कुण्डली के रूप के कारण ही इसे कुण्डलिनी पुकारा जाता है।  सर्प के रूप के कारण सर्पिणी या चिति भी कहते हैं।

मनुष्य की रीढ़ की हड्डी भीतर से पोली है।उसके भीतर एक नाड़ी है जिसे योग में सुषुम्ना नाड़ी कहा जाता है। इसी के भीतर दो और नाड़ियाँ हैं--इड़ा और पिंगला, उसी प्रकार से जैसे बिजली के किसी मोटे तार के भीतर दो अलग अलग पतले तार होते हैं- जिनमें positive और negative विद्युत धाराएं प्रवाहित होती हैं।

सुषुम्ना नाड़ी बिलकुल खाली नहीं है , वहां शून्य है, इसीलिए उसे शून्य नाड़ी भी कहते है।  शून्य अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए होता है। इड़ा और पिंगला नाड़ियों में क्रमशः मन और प्राण का प्रवाह है। इसलिये इड़ा को मनोवहा और पिंगला को प्राणवहा नाड़ी कहते हैं।

कुण्ड के एक कोने पर इड़ा,  एक पर पिंगला और  एक पर सुषुम्ना की ग्रन्थियाँ हैं। हमारे शरीर का यह एक
महत्वपूर्ण स्थान है। जीवनी शक्ति का फैलाव सम्पूर्ण शरीर में इसी केंद्र से होता है। इसे मूलाधार चक्र कहते हैं। त्रिकोण योनि का प्रतीक है, इसलिए तांत्रिक इसे योनि चक्र भी कहते हैं।

यहीं से तीनो नाड़ियाँ एक साथ मिलकर मेरुदंड में से होकर ऊपर की ओर चली गई हैं।
ऊपर जा कर तीनों अलग अलग हो गई हैं।

इड़ा बाई कनपटी और पिंगला दाई कनपटी से होकर आज्ञा चक्र में मिल कर और तीनों प्रकार के मस्तिष्कों को पार कर ब्रह्म रंध्र से मिल गई है। इसी प्रकार सुषुम्ना नाड़ी भी खोपड़ी के पीछे से होकर ब्रह्म रंध्र से मिल गई है। विचार की तरंगें इसी ब्रह्म रंध्र के मार्ग से सुषुम्ना में प्रवेश कर तीसरे मस्तिष्क मेंदूला ablongata में पहुंचती हैं।

हमारे शरीर में ज्ञान तंतुओं के दो भाग हैं। पहला भाग मस्तिष्क और मेरुदंड के भीतर है और दूसरा भाग छाती,पेट और पेड़ू के भीतर है।

पहले भाग को सेरिबो स्पाइनल सिस्टम कहते हैं और दूसरे भाग को सिम्पैथेटिक सिस्टम कहते हैं। मनुष्य के भीतर इच्छाओं,भावनाओं का जन्म और व्यापार पहले भाग में और उसी प्रकार बुद्धि,पोषण,पाचन व्यापार दूसरे भाग में चलता रहता है।

शब्द,रस,रूप,गंध और स्पर्श की क्रिया व्यापार मस्तिष्क और मेरुदंड के ज्ञान तंतु करते हैं।विचार भी यहीं पैदा होते हैं।

मस्तिष्क के तीन भाग हैं--मुख्य मस्तिष्क, गौण
मस्तिष्क और अधो स्थित मस्तिष्क। मुख्य मस्तिष्क को सेरिब्रम ,गौण मस्तिष्क को सेरिबेलम कहते हैं और अधो स्थित मस्तिष्क को मेडुला ablongata कहते हैं। यह मेरुदंड के ऊपरी सिरे पर स्थित है। इसका आकर मुर्गी के अंडे के बराबर होता है। उसमें एक ऐसा द्रव भरा होता है जो अज्ञात है।

Medical Science

अभीतक इस द्रव का पता नहीं लगा पाई है।  योगी इसे सहस्त्रार कहते हैं। इसके ज्ञान तंतुओं का एक सिरा सुषुम्ना नाडी के मुख से मिला है और दूसरा ब्रह्म रंध्र में निकल रहता है जहाँ पर चोटी रखने की प्रथा है।
उस स्थान पर सुई के नोक के बराबर एक छिद्र है जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। ब्रह्म रंध्र के माध्यम से ब्रह्माण्ड के बिखरे अबक विचारों को व्यक्ति ग्रहण करता रहता है।

समर्थ सिद्धगुरु के अनुग्रह से सिद्धयोग ध्यान की क्रियात्मक प्रक्रिया के माध्यम से सबसे पहले कुंडलिनी का जागरण होता है, फिर उसका उत्थान होता है।

इसके बाद क्रम से चक्रों का भेदन होता हैं और अंत में आज्ञा चक्र में अपने सद्गुरु के चिन्मय स्वरुप का दर्शन
होता है। अंत में सहस्त्रार स्थित शिव से शक्ति का सामरस्य महा मिलन होता है।
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