Sunday, December 28, 2014

शंखनाद की औषधीय विशेषता

  • हिंदू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख की उत्पत्ति छठे स्थान पर हुई। शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद हैं, जो अन्य तेरह रत्नों में हैं। दक्षिणावर्ती शंख के अद्भुत गुणों के कारण ही भगवान विष्णु ने उसे अपने हस्तकमल में धारण किया हुआ है।
  • शंख मुख्यतः दो प्रकार के होते ह्रैं : वामावर्ती और दक्षिणावर्ती। इन दोनों की पूजा का विशेष महत्व है। दैनिक पूजा-पाठ एवं कर्मकांड अनुष्ठानों के आरंभ में तथा अंत में वामावर्ती शंख का नाद किया जाता है। इसका मुख ऊपर से खुला होता है। इसका नाद प्रभु के आवाहन के लिए किया जाता है। इसकी ध्वनि से क्क शब्द निकलता है। यह ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिक भी इस बात पर एकमत हैं कि शंख की ध्वनि से होने वाले वायु-वेग से वायुमंडल में फैले वे अति सूक्ष्म किटाणु नष्ट हो जाते हैं, जो मानव जीवन के लिए घातक होते हैं।
  • उक्त अवसरों के अतिरिक्त अन्य मांगलिक उत्सवों के अवसर पर भी शंख वादन किया जाता है। महाभारत के युद्ध के अवसर पर भगवान कृष्ण ने पांचजन्य निनाद किया था। कोई भी शुभ कार्य करते समय शंख ध्वनि से शुभता का अत्यधिक संचार होता है। शंख की आवाज को सुन कर लोगों को ईश्वर का स्मरण हो आता है।
  • शंख वादन के अन्य लाभ भी हैं। इसे बजाने से सांस की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बजाना विशेष लाभदायक है। शंख बजाने से पूरक, कुंभक और प्राणायाम एक ही साथ हो जाते हैं। पूरक सांस लेने, कुंभक सांस रोकने और रेचक सांस छोड़ने की प्रक्रिया है। आज की सबसे घातक बीमारी हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, सांस से संबंधित रोग, मंदाग्नि आदि शंख बजाने से ठीक हो जाते हैं।
  • घर में शंख वादन से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां भीतर नहीं आ सकतीं। यही नहीं, घर में शंख रखने और बजाने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।
  • दक्षिणावर्ती शंख सुख-समृद्धि का प्रतीक है। इसका मुख ऊपर से बंद होता है।
  • अगर आपको खांसी, दमा, पीलिया, ब्लड प्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे निजात पाने का एक सरल और आसान सा उपाय है- प्रतिदिन शंख बजाइए।
  • करते हैं कि शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।
  • शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है।
  • शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है।
  • प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं हो सकते।
  • शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।
  • शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का भी व्यायाम हो जाता है।
  • शंख वादन से स्मरण शक्ति भी बढ़ती है।

Saturday, December 27, 2014

श्रीमद्भागवत कथा भाग 112


भागवत में आनंद ही आनंद है क्योंकि श्रीकृष्ण पूर्ण आनंद स्वरूप हैं। संतों ने दो प्रकार के आनंद बताए- 1. साधन जन्य आनंद जो साधन से प्राप्त हो वह साधन जन्य आनंद कहलाता है। जैसे किसी को रसमलाई खाने में आनंद आता है तो किसी को नहीं। ठीक इसी प्रकार संसार की सभी वस्तुओं में अलग-अलग व्यक्ति के लिए समय-समय पर कम अधिक आनंद प्राप्त होता रहता है। किसी को बड़े जोर की भूख लगी हो, उसे रसगुल्ले खाने को दिए जायें तो पहले रसगुल्ले की अपेक्षा उत्तरोत्तर आनंद का ह्रास होता चला जाता है और एक समय पूर्णता की स्थिति को प्राप्त हो व्यक्ति रसगुल्लों से मोह त्याग देता है। कहने का भाव यह है कि हर वस्तु में हर समय हर मानव को एक जैसा आनंद प्राप्त नहीं होता और प्राप्त होने वाले आनंद में स्थायित्व भी नहीं होता है। 2. स्वयं सिद्ध आनंद यह आनंद बड़ा ही विलक्षण आनंद है। इस आनंद में वस्तु का अभाव होता है तो भी आनंद प्राप्त होता है, विपरीत परिस्थितियों में भी आनंद प्राप्त होता है। श्री शुकदेव बाबा के पास कुछ भी नहीं था फिर भी आनंद में निमग्न रहते थे। एक संत विपरीत स्थिति में कांटों की सेज पर भी आनंद का अनुभव करता है तथा साधनों के अभाव में भी निरंतर आनंद प्राप्त करता रहता है। परंतु परिपूर्ण आनंद तो श्रीकृष्ण दर्शन से ही मिलती है।

अक्षय पात्र की घटना 2

भगवान ने द्रौपदी की पुकार सुनते ही उस अक्षय पात्र में लगे हुए साग के एक तिनके को खा लिया, जिससे दुर्वासा ऋषि सहित सारी सृष्टि ही तृप्त हो गयी| भूख तृप्त होने पर दुर्वासा ऋषि ने पाण्डवों को “युद्ध में विजयी होने” का आशीर्वाद दे दिया| अर्जुन कह्ते हैं कि भगवान की कृपा से ही हम सब पाण्डव दुर्वासा ऋषि के शाप से बच पाये| दुर्वासा जी की सेवा की दुर्योधन ने और आशीर्वाद मिला पाण्डवों को, यह सब भगवान की ही कृपा थी| आज रथ, धनुष-बाण और अर्जुन भी वही है ,परंतु किसी में भी शक्ति नहीं है| पाण्डव-कुल में बहुत सी विशेषताएं हैं:- जैसे कि इस कुल में सभी भगवान के महान भक्त थे और नारियां तो महान थीं हीं|

भगवान के स्वधाम-गमन की बात सुनते ही कुंती ने अपने प्राण त्याग दिये थे| भगवान के स्वधाम-गमन और कुन्ती के देहावसान के बाद पाण्डवों ने परीक्षित जी को राजगद्दी पर बिठाया और स्वयं स्वर्गारोहण के लिये बद्रीनाथ जी की तरफ प्रस्थान किया| अब श्रीपरीक्षित जी हस्तिनापुर के सम्राट हुए| उन्होंने इरावती से विवाह किया| उनके जनमेजय आदि चार पुत्र हुए| उन्होंने अनेक यज्ञ कराये| वे प्रजा को प्राणों के समान प्रिय मानते थे|

Thursday, December 18, 2014

कुछ सूत्र जो याद रक्खे


  • चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए। दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।
  • सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।
  • दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।
  • दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।
  • गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।
  • ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।
  • शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।
  • खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।
  • घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।
  • तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।
  • चावल के साथ सिरका कभी नहीं।
  • चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।
  • खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।
कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-
  • खरबूजे के साथ चीनी
  • इमली के साथ गुड
  • गाजर और मेथी का साग
  • बथुआ और दही का रायता
  • मकई के साथ मट्ठा
  • अमरुद के साथ सौंफ
  • तरबूज के साथ गुड
  • मूली और मूली के पत्ते
  • अनाज या दाल के साथ दूध या दही
  • आम के साथ गाय का दूध
  • चावल के साथ दही
  • खजूर के साथ दूध
  • चावल के साथ नारियल की गिरी
  • केले के साथ इलायची
कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं।

ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ---
  • केले की अधिकता में दो छोटी इलायची
  • आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड
  • जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक
  • सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम
  • खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत
  • तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग
  • अमरूद के लिए सौंफ
  • नींबू के लिए नमक
  • बेर के लिए सिरका
  • गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये
  • चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये
  • बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च
  • मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये
  • बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं
  • खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये
  • मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं
  • इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये
  • मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये
  • मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये
  • घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं
  • खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें
  • पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये
अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये , ८०% बीमारियों से बचे रहेंगे।

अब ये देखिये कि किस महीने में क्या नही खाना चाहिए और क्या जरूर खाना चाहिए ---
  • चैत में गुड बिलकुल नहीं खाना, नीम की पत्ती /फल, फूल खूब चबाना।
  • बैसाख में नया तेल नहीं खाना,चावल खूब खाएं।
  • जेठ में दोपहर में चलना मना है, दोपहर में सोना जरुरी है।
  • आषाढ़ में पका बेल खाना मना है, घर की मरम्मत जरूरी है।
  • सावन में साग खाना मना है, हर्रे खाना जरूरी है।
  • भादो मे दही मत खाना, चना खाना जरुरी है।
  • कुवार में करेला मना है, गुड खाना जरुरी है।
  • कार्तिक में जमीन पर सोना मना है, मूली खाना जरूरी है।
  • अगहन में जीरा नहीं खाना , तेल खाना जरुरी है।
  • पूस में धनिया नहीं खाना, दूध पीना जरूरी है।
  • माघ में मिश्री मत खाना, खिचड़ी खाना जरुरी है।
  • फागुन में चना मत खाना, प्रातः स्नान और नाश्ता जरुरी है।

Monday, December 15, 2014

कृष्ण की दीवानी बनकर


कृष्ण की दीवानी बनकर मीरा ने घर छोड़ दिया।
इक राजा की बेटी ने गिरधर से नाता जोड़ लिया॥

नाचे, गावे मीराबाई, ले कर मन का इक तारा।
पग में घुँघरू, गले में माला, भेष जोगन का ही धारा।
राणा कुल की आन बान को, सब मीरा ने तोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर...........

पी गई मीराबाई देखो, राणा के विष का प्याला।
क्या बिगाड़ सकता है कोई, जिसका गिरधर रखवाला॥
मन मोहन के रंग में रंगकर, मीरा ने जग छोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर...........

श्याम शरण में जो भी आते, श्याम के ही बन जाते है।
भजन भाव में भक्त दयालु, मीरा के गुण गाते है॥
भव सागर से तिर गई मीरा, देह का बंधन छोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर

श्री हनुमान चालीसा


श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||

चोपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||

महाबीर बिक्रम बजरंगी|
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे|
काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन||

विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||

सुकसम रूप धरी सियहि दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||

लाय संजीवनी लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावे |
अस कही श्रीपति कंठ लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा|
नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहा ते|
कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

तुम्हरो मंत्र विभिषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं|
जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||

आपन तेज सम्हारो आपे |
तीनों लोक हांक ते काँपे ||
भुत पिशाच निकट नहिं आवे |
महावीर जब नाम सुनावे ||

नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||

सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे |
सोई अमित जीवन फल पावे ||

चारों जुग प्रताप तुम्हारा |
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||

अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||

तुम्हरे भजन राम को पावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जनम हरी भक्त कहाई ||

और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेई सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||

जय जय जय हनुमान गोसाई |
कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटही बंदी महा सुख होई ||

जो यहे पढे हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप ||
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