Sunday, December 28, 2014

शंखनाद की औषधीय विशेषता

  • हिंदू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख की उत्पत्ति छठे स्थान पर हुई। शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद हैं, जो अन्य तेरह रत्नों में हैं। दक्षिणावर्ती शंख के अद्भुत गुणों के कारण ही भगवान विष्णु ने उसे अपने हस्तकमल में धारण किया हुआ है।
  • शंख मुख्यतः दो प्रकार के होते ह्रैं : वामावर्ती और दक्षिणावर्ती। इन दोनों की पूजा का विशेष महत्व है। दैनिक पूजा-पाठ एवं कर्मकांड अनुष्ठानों के आरंभ में तथा अंत में वामावर्ती शंख का नाद किया जाता है। इसका मुख ऊपर से खुला होता है। इसका नाद प्रभु के आवाहन के लिए किया जाता है। इसकी ध्वनि से क्क शब्द निकलता है। यह ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिक भी इस बात पर एकमत हैं कि शंख की ध्वनि से होने वाले वायु-वेग से वायुमंडल में फैले वे अति सूक्ष्म किटाणु नष्ट हो जाते हैं, जो मानव जीवन के लिए घातक होते हैं।
  • उक्त अवसरों के अतिरिक्त अन्य मांगलिक उत्सवों के अवसर पर भी शंख वादन किया जाता है। महाभारत के युद्ध के अवसर पर भगवान कृष्ण ने पांचजन्य निनाद किया था। कोई भी शुभ कार्य करते समय शंख ध्वनि से शुभता का अत्यधिक संचार होता है। शंख की आवाज को सुन कर लोगों को ईश्वर का स्मरण हो आता है।
  • शंख वादन के अन्य लाभ भी हैं। इसे बजाने से सांस की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बजाना विशेष लाभदायक है। शंख बजाने से पूरक, कुंभक और प्राणायाम एक ही साथ हो जाते हैं। पूरक सांस लेने, कुंभक सांस रोकने और रेचक सांस छोड़ने की प्रक्रिया है। आज की सबसे घातक बीमारी हृदयाघात, उच्च रक्त चाप, सांस से संबंधित रोग, मंदाग्नि आदि शंख बजाने से ठीक हो जाते हैं।
  • घर में शंख वादन से घर के बाहर की आसुरी शक्तियां भीतर नहीं आ सकतीं। यही नहीं, घर में शंख रखने और बजाने से वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।
  • दक्षिणावर्ती शंख सुख-समृद्धि का प्रतीक है। इसका मुख ऊपर से बंद होता है।
  • अगर आपको खांसी, दमा, पीलिया, ब्लड प्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे निजात पाने का एक सरल और आसान सा उपाय है- प्रतिदिन शंख बजाइए।
  • करते हैं कि शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।
  • शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है।
  • शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है।
  • प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं हो सकते।
  • शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।
  • शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का भी व्यायाम हो जाता है।
  • शंख वादन से स्मरण शक्ति भी बढ़ती है।

Saturday, December 27, 2014

श्रीमद्भागवत कथा भाग 112


भागवत में आनंद ही आनंद है क्योंकि श्रीकृष्ण पूर्ण आनंद स्वरूप हैं। संतों ने दो प्रकार के आनंद बताए- 1. साधन जन्य आनंद जो साधन से प्राप्त हो वह साधन जन्य आनंद कहलाता है। जैसे किसी को रसमलाई खाने में आनंद आता है तो किसी को नहीं। ठीक इसी प्रकार संसार की सभी वस्तुओं में अलग-अलग व्यक्ति के लिए समय-समय पर कम अधिक आनंद प्राप्त होता रहता है। किसी को बड़े जोर की भूख लगी हो, उसे रसगुल्ले खाने को दिए जायें तो पहले रसगुल्ले की अपेक्षा उत्तरोत्तर आनंद का ह्रास होता चला जाता है और एक समय पूर्णता की स्थिति को प्राप्त हो व्यक्ति रसगुल्लों से मोह त्याग देता है। कहने का भाव यह है कि हर वस्तु में हर समय हर मानव को एक जैसा आनंद प्राप्त नहीं होता और प्राप्त होने वाले आनंद में स्थायित्व भी नहीं होता है। 2. स्वयं सिद्ध आनंद यह आनंद बड़ा ही विलक्षण आनंद है। इस आनंद में वस्तु का अभाव होता है तो भी आनंद प्राप्त होता है, विपरीत परिस्थितियों में भी आनंद प्राप्त होता है। श्री शुकदेव बाबा के पास कुछ भी नहीं था फिर भी आनंद में निमग्न रहते थे। एक संत विपरीत स्थिति में कांटों की सेज पर भी आनंद का अनुभव करता है तथा साधनों के अभाव में भी निरंतर आनंद प्राप्त करता रहता है। परंतु परिपूर्ण आनंद तो श्रीकृष्ण दर्शन से ही मिलती है।

अक्षय पात्र की घटना 2

भगवान ने द्रौपदी की पुकार सुनते ही उस अक्षय पात्र में लगे हुए साग के एक तिनके को खा लिया, जिससे दुर्वासा ऋषि सहित सारी सृष्टि ही तृप्त हो गयी| भूख तृप्त होने पर दुर्वासा ऋषि ने पाण्डवों को “युद्ध में विजयी होने” का आशीर्वाद दे दिया| अर्जुन कह्ते हैं कि भगवान की कृपा से ही हम सब पाण्डव दुर्वासा ऋषि के शाप से बच पाये| दुर्वासा जी की सेवा की दुर्योधन ने और आशीर्वाद मिला पाण्डवों को, यह सब भगवान की ही कृपा थी| आज रथ, धनुष-बाण और अर्जुन भी वही है ,परंतु किसी में भी शक्ति नहीं है| पाण्डव-कुल में बहुत सी विशेषताएं हैं:- जैसे कि इस कुल में सभी भगवान के महान भक्त थे और नारियां तो महान थीं हीं|

भगवान के स्वधाम-गमन की बात सुनते ही कुंती ने अपने प्राण त्याग दिये थे| भगवान के स्वधाम-गमन और कुन्ती के देहावसान के बाद पाण्डवों ने परीक्षित जी को राजगद्दी पर बिठाया और स्वयं स्वर्गारोहण के लिये बद्रीनाथ जी की तरफ प्रस्थान किया| अब श्रीपरीक्षित जी हस्तिनापुर के सम्राट हुए| उन्होंने इरावती से विवाह किया| उनके जनमेजय आदि चार पुत्र हुए| उन्होंने अनेक यज्ञ कराये| वे प्रजा को प्राणों के समान प्रिय मानते थे|

Thursday, December 18, 2014

कुछ सूत्र जो याद रक्खे


  • चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए। दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।
  • सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।
  • दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।
  • दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।
  • गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।
  • ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।
  • शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।
  • खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।
  • घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।
  • तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।
  • चावल के साथ सिरका कभी नहीं।
  • चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।
  • खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।
कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-
  • खरबूजे के साथ चीनी
  • इमली के साथ गुड
  • गाजर और मेथी का साग
  • बथुआ और दही का रायता
  • मकई के साथ मट्ठा
  • अमरुद के साथ सौंफ
  • तरबूज के साथ गुड
  • मूली और मूली के पत्ते
  • अनाज या दाल के साथ दूध या दही
  • आम के साथ गाय का दूध
  • चावल के साथ दही
  • खजूर के साथ दूध
  • चावल के साथ नारियल की गिरी
  • केले के साथ इलायची
कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं।

ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ---
  • केले की अधिकता में दो छोटी इलायची
  • आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड
  • जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक
  • सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम
  • खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत
  • तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग
  • अमरूद के लिए सौंफ
  • नींबू के लिए नमक
  • बेर के लिए सिरका
  • गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये
  • चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये
  • बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च
  • मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये
  • बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं
  • खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये
  • मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं
  • इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये
  • मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये
  • मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये
  • घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं
  • खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें
  • पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये
अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये , ८०% बीमारियों से बचे रहेंगे।

अब ये देखिये कि किस महीने में क्या नही खाना चाहिए और क्या जरूर खाना चाहिए ---
  • चैत में गुड बिलकुल नहीं खाना, नीम की पत्ती /फल, फूल खूब चबाना।
  • बैसाख में नया तेल नहीं खाना,चावल खूब खाएं।
  • जेठ में दोपहर में चलना मना है, दोपहर में सोना जरुरी है।
  • आषाढ़ में पका बेल खाना मना है, घर की मरम्मत जरूरी है।
  • सावन में साग खाना मना है, हर्रे खाना जरूरी है।
  • भादो मे दही मत खाना, चना खाना जरुरी है।
  • कुवार में करेला मना है, गुड खाना जरुरी है।
  • कार्तिक में जमीन पर सोना मना है, मूली खाना जरूरी है।
  • अगहन में जीरा नहीं खाना , तेल खाना जरुरी है।
  • पूस में धनिया नहीं खाना, दूध पीना जरूरी है।
  • माघ में मिश्री मत खाना, खिचड़ी खाना जरुरी है।
  • फागुन में चना मत खाना, प्रातः स्नान और नाश्ता जरुरी है।

Monday, December 15, 2014

कृष्ण की दीवानी बनकर


कृष्ण की दीवानी बनकर मीरा ने घर छोड़ दिया।
इक राजा की बेटी ने गिरधर से नाता जोड़ लिया॥

नाचे, गावे मीराबाई, ले कर मन का इक तारा।
पग में घुँघरू, गले में माला, भेष जोगन का ही धारा।
राणा कुल की आन बान को, सब मीरा ने तोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर...........

पी गई मीराबाई देखो, राणा के विष का प्याला।
क्या बिगाड़ सकता है कोई, जिसका गिरधर रखवाला॥
मन मोहन के रंग में रंगकर, मीरा ने जग छोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर...........

श्याम शरण में जो भी आते, श्याम के ही बन जाते है।
भजन भाव में भक्त दयालु, मीरा के गुण गाते है॥
भव सागर से तिर गई मीरा, देह का बंधन छोड़ दिया।
कृष्ण की दीवानी बनकर

श्री हनुमान चालीसा


श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||

चोपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||

महाबीर बिक्रम बजरंगी|
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे|
काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन||

विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||

सुकसम रूप धरी सियहि दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||

लाय संजीवनी लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावे |
अस कही श्रीपति कंठ लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा|
नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहा ते|
कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

तुम्हरो मंत्र विभिषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं|
जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||

आपन तेज सम्हारो आपे |
तीनों लोक हांक ते काँपे ||
भुत पिशाच निकट नहिं आवे |
महावीर जब नाम सुनावे ||

नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||

सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे |
सोई अमित जीवन फल पावे ||

चारों जुग प्रताप तुम्हारा |
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||

अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||

तुम्हरे भजन राम को पावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जनम हरी भक्त कहाई ||

और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेई सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||

जय जय जय हनुमान गोसाई |
कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटही बंदी महा सुख होई ||

जो यहे पढे हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप ||

Monday, November 10, 2014

एक बंदर और बंदरिया की शादी



बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया में एक
अनोखी शादी हुई जिसमें सैकड़ों लोगों ने न
केवल शिरकत की बल्कि इस मौके पर आयोजित
प्रीति भोज का भी लुत्फ उठाया. यह
शादी थी एक बंदर और
बंदरिया की. विवाह के लिए शुभ मुहूर्त सोमवार को था,
जिसमें बंदर रामू और
बंदरिया रामदुलारी की शादी करवाई
गई. इस शादी के लिए करीब 300
निमंत्रण कार्ड बांटे गए थे.
बेतिया के तीन लालटेन चौक निवासी उदेश
महतो ने वर और वधू पक्ष के अभिभावक
की भूमिका निभाई. शादी में रामू ने
नीला और रामदुलारी ने
गुलाबी जोड़ा पहना था. उदेश बताते हैं कि विवाह वैदिक
मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न हुआ, जिसके बाद
प्रीति भोज का भी आयोजन किया गया था.
उदेश को खुशी है कि उन्होंने यह विवाह कराया,
लेकिन अफसोस इस बात का है कि बैंड-बाजे वालों के
देरी से पहुंचने की वजह से वह बारात
नहीं निकाल सके. उन्होंने बताया कि बैंड वालों के
इंतजार में शुभ मुहूर्त निकल जाता.
उन्होंने बताया कि रामू बंदर से उनकी मुलाकात
करीब सात वर्ष पहले गोवर्धन पर्वत घूमने के दौरान
हुई थी. वह उसे अपने घर ले आए और उसे अपने
बच्चे की तरह पाला व पहले
उसी की शादी कराने
का फैसला किया. इसलिए उन्होंने दो साल पहले 2,500 रुपये में
रामदुलारी बंदरिया को खरीदा. उदेश बताते हैं
कि उनकी शादी के कार्ड
भी छपवाए गए थे. शादी में जिला कलेक्टर
और पुलिस अधीक्षक सहित 300
लोगों को बुलाया गया था.

Tuesday, October 14, 2014

Rheumatoid Arthritis (RA)

 Rheumatoid Arthritis एक आटो इम्यून बीमारी है। जिसमे शरीर का प्रतिरोधक तन्त्र जो शरीर की बाहरी बैक्टीरिया और वायरस से सुरक्षा करता है। वो गलती से शरीर के जोडो पर प्रहार कर देता है। प्रतिरोधक तन्त्र को ऐसा व्यवहार शरीर के जोडो मे सूजन और इन्फलेमेशन पैदा कर देता है। यह बीमारी पुरषो की उपेक्षा स्त्रीयो मे अधिक पायी जाती है।

आर्थेराइटिस मे हाथ पैर के छोटे जोड मुख्यतः प्रभावित होते है। परन्तु कंधे एंव घुटने जैसे बडे जोड भी इससे प्रभावित हो सकते है। इस बीमारी मे जोडो की synovial membrane मे इन्फलेमेशन हो जाती है। तथा जोडो मे सूजन आ जाती है एंव अकडन भी हो जाती है।

ज्ब व्यक्ति मे Rheumatoid arthritis(RA) की संम्भावना हो तो उसे अपने खून की जांच रूमाटोयेड फैक्टर (RF) की उपस्थिति के लिए करानी चाहिए। हालांकि RF नेगेटिव टेस्ट के बावजूद भी Rheumatoid arthritis (RA) की संम्भावना से इन्कार नही किया जा सकता।

रूमाटोयेड फैक्टर टेस्ट की लो स्पेसीफीटी के कारण एक दूसरा टेस्ट जिसे anti citrullinated protein anti bodies(ACPAs) कहते है कराया जा सकता है।

उपचार

रूमाटोयेड आर्थेराइटिस का ailopathy में वैसे कोई सटीक उपचार नही है लेकिन ऐसी दवाइया उपलब्ध है जो बीमारी की तीव्रता को कम कर देती है। , इन्फलेमेशन को कम कर देती है व बीमारी के बढने की गति को भी कम कर देती है।

Sunday, October 5, 2014

परफेक्ट बीवी


न कभी तंग करती है,
न कभी झूठ बोलती है,
न ही वो धोखा देती है,
न कभी शक करती है,
न कभी पैसे मांगती है,
न ही कभी शॉपिंग करने जाती है,
और न ही इस दुनिया में पायी जाती है।
और जिसके पास है वो बुहत खुशनसीब है

सुविचार



माँ से बढकर कोई महान नही है।

पिता से बढकर कोई मार्गदर्शक नही है।

गुरु से बढकर कोई ग्यानी नही है।

भाई से बढकर कोई भरोसेमंद नही है।

बहन से बढकर कोई रिश्ता नही है।

पत्नि से बढकर कोई जीवन साथी नही है।

पुत्र से बढकर कोई सहारा नही है।

पुत्री से बढकर कोई सेवा करने वाला नही है।

मित्रता से बढकर कोई प्रेम नही है..

Sunday, September 28, 2014

नवरात्रे के नौ दिन शक्ति पूजा


नवरात्रे के नौ दिन शक्ति पूजा के इसी रहष्य को समझने एवं आत्मसातकरने के दिन है ! इन नौ दिनों में हमें अपनी संचित शक्ति से माँ भगवती की उपासना - अभ्यर्थना करनी चाहिए ! इन नौ दिनों में अनगिनत रहष्य समाये है परन्तु प्रधानतया ये गायत्री के महामंत्र में समाहित है! गायत्री मंत्र के आगे पीछे ॐ लगा कर जप करने से स्थूल, सूक्षम, एवं कारण इन तीनो शरीरो की शक्तियों का जागरण होता है और इसी के फल सवरूप ओंकार के परम पद की प्राप्ति होती है पर ऐसा उन्ही के जीवन में होता है जो अपने जीवन के क्षंण क्षंण में , शक्ति के कण कण का संचय करते है और साथ में सतकर्मो के रूप में इसका सद्व्य करके विश्वव्यापनी माँ जगदम्बा की अर्चना आराधना करते है

शक्ति पूजा के इछुक साधको को एक चीज का ध्यान रखना चाहिए, वह है.....'' शक्ति संचय,'' संचय के बिना शक्ति बिखर जाती है और अभीष्ट पूर्ण नहीं हो पाता शक्ति साधको को नवरात्र के इसी क्षंण माँ महाशक्ति की पूजा के लिए विशेष ध्यान देने योग्य बाते !!!! पंचोपंचार की तैयारी करनी होगी !! इन पंचोपचारो के क्रम में आते है

1 शारीरिक शक्ति 2 मानसिक शक्ति 3 भावनात्मक शक्ति 4 आर्थिक शक्ति ५ व् आधात्मिक शक्ति इन पांचो शक्तियों का संचय आवश्यक है!! इन पांच शक्तियों का आभाव ही मनुष्य को पीड़ा की प्रताड़ना सहने के लिए विवश करता है !! इन्ही पांच शक्तियों की बर्बादी मनुष्य को गहरे अंधकार में धकेलती है जबकि इन पांचो शक्तियों के संचय से व्यक्ति की प्रसन्ता सतगुणित होती है और सतकर्मो में इसके सदव्य से निरंतर उत्थान के सोपान चढ़ता है .

माता चंद्रघण्टा




भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, बाण अस्त्र – शस्त्र आदि विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है।  इनके घंटे सी भयानक चण्ड ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। माता चन्द्रधण्टा की उपासना हमारे इस लोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद् गति को देने वाली है।

मां का यह रूप पाप-ताप एवं समस्त विघ्न बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एवं कल्याणकारी है।  तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चंद्रघंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक की रक्षा करती हैं।

श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन मणिपुर चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके चंद्रघण्टा स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
Mantra

पिण्डज प्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता ||

कवच 

रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

ध्यान

वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥

स्तोत्र

आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

माता शैलपुत्री


दुर्गा पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना की जाती है...

मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा आरम्भ हो जाता है. नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ इनकी ही पूजा और उपासना की जाती है. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होता है. पौराणिक कथानुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी. उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया. अपने मां और बहनों से मिलने को आतुर मां सती बिना निमंत्रण के ही जब पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार से भरा भाव मिला. मां सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया और अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री कहा जाता है. शैलपुत्री देवी समस्त शक्तियों की स्वामिनी हैं।

कवच 

ओमकार: में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी

Mantra

वंदे वाद्द्रिछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

ध्यान
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

Thursday, September 25, 2014

तेजाब के हमले में घायल एक लड़की के दिल से निकलीं


चलो, फेंक दिया
सो फेंक दिया....
अब कसूर भी बता दो मेरा

तुम्हारा इजहार था
मेरा इन्कार था
बस इतनी सी बात पर
फूंक दिया तुमने
चेहरा मेरा....

गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
कि उसको मैं समझ ना सकी....

अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम ... अपनाओगे मुझको?
क्या अब अपना ... बनाओगे मुझको?

क्या अब ... सहलाओगे मेरे चहरे को?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे?
जो अब अन्दर धस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलियाँ मेरे गालों पर?
जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है

हाँ, शायद तुम कर लोगे....
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना?

अच्छा! एक बात तो बताओ
ये ख्याल 'तेजाब' का कहाँ से आया?
क्या किसी ने तुम्हें बताया?
या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया?
अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर?
गौरान्वित..???
या पहले से ज्यादा
और भी मर्दाना...???

तुम्हें पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बाकी है

एक सलाह दूँ!
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर इसमें मुझसे छलाँग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊँगी मैं
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें
और गहरा और सच्चा होगा....

एक दुआ है....
अगले जन्म में
मैं तुम्हारी बेटी बनूँ
और मुझे तुम जैसा
आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे
तुम्हारी इस हरकत से
मुझे और मेरे परिवार को
कितना दर्द सहना पड़ा है।
तुमने मेरा पूरा जीवन
बर्बाद कर दिया है।

दुष्ट मनुष्य के पास किसी को नही ठहरना चाहिए


दुष्ट व्यक्ति तो दूसरों के कार्य को नष्ट करना ही जानते हैं।सिद्ध करना नहीं,,,जिस प्रकार वायु वृक्षों को उखाडना ही जानती उन्हे खडा करना नहीं ,,इन्हैं तो महॉन लोगों के कार्य अच्छे नहीं लगते,इसीलिए वे उनसे द्वेष करते हैं। दुष्ट यदि विद्वान हो तब भी उसके संग से बचना चाहिए,,,दुष्ट बुद्धि के लोग दूसरों के उत्तम गुंणों को जानने की वैसी इच्छा नहीं करते,जैसी इच्छा उनके अवगुंणों को जानने की करते हैं,,,बिना कारण शत्रुता दिखाने वाले व्यक्ति से कौन नहीं डरता,,जिसके मुंह में सॉप के विष जैसे असह्य अपशब्द रहते हैं,,,,

Friday, September 19, 2014

Hindi Jokes Collection 1


अमेरिकन बोला भाई साहब बताइए अगर आपका भारत महान है तो संसार के इतने आविष्कारों में आपके देश का क्या योगदान है ?? हिन्दुस्तानी-अरे अमेरिकन सुन !! ... 1. संसार की पहली फायर प्रूफ लेडी भारत में हुई !! नाम था "होलिका" आग में जलती नही थी !! इसीलिए उस वक्त फायर ब्रिगेड चलती नहीं थी!! 2. संसार की पहली वाटर प्रूफ बिल्डिंग भारत में हुई !! नाम था भगवान विष्णु का "शेषनाग"!! काम तो ऐसे जैसे"विशेषनाग"!! 3. दुनिया के पहले पत्रकार भारत में हुए !! "नारदजी" जो किसी राजव्यवस्था से नही डरते थे !! तीनों लोक की सनसनी खेज रिपोर्टिंग करते थे !! 4. दुनिया के पहले कामेंट्रेटर "संज य"हुए, जिन्होंने नया इतिहास बनाया !! महाभारत के युद्ध का आंखो देखा हाल अंधे "ध्रतराष्ट्र" को उन्ही ने सुनाया !! 5. दादागिरी करना भी दुनिया हमने सिखाया क्योंकि वर्षो पहले हमारे"शनिदेव" ने ऐसा आतंक मचाया कि"हफ्ता" वसूली का रिवाज उन्हीं के शिष्यों ने चलाया !! आज भी उनके शिष्य हर शनिवार को आते हैं ! उनका फोटो दिखाकर हफ्ता ले जाते हैं !! 6-दुनिया का पहला Bodybuilder - अंजलि पुत्र हनुमान और दूसरा Bodybuilder- भीम तब तुमरा American Arnold पैदा भी नहीं हुआ था अमेरिकन बोला दोस्त फालतू की बातें मत बनाओ! कोई ढंग का आविष्कार हो तो बताओ !! जैसे हमने इंसान की किडनी बदल दी, बाईपास सर्जरी कर दी आदि !! हिन्दुस्तानी बोला रे अमेरिकी सर्जरी का तो आइडिया ही दुनिया को हमने दिया था !! तू ही बता "गणेशजी" का ऑपरेशन क्या तेरे बाप ने किया था !! अमेरिकी हड़बड़ाया !! गुस्से में बड़बड़ाया!! देखते ही देखते चलता फिरता नजर आया !! तब से पूरी दुनिया को हम पर मान है!!! दुनिया में देश कितने ही हों पर सब में मेरा"भारत" महान है.. हिन्दुस्तानी Rocked अमेरिकन Shocked...!!
 
Hindi Joke 2
 
पति और पत्‍‌नी कहीं जा रहे थे।

तभी एक भिखारी वहां से गुजरा और आवाज लगाई

'ऐ हुस्न की मल्लिका, अंधे को 5 रूपए दे दे।'

पति ने पत्‍‌नी की तरफ देखा और बोला- 'दे दो, बेचारा वाकई अंधा है..'

Hindi Joke 3
 
टीचर: नालायक,क्लास में दिनभर लड़कियों से बातें क्यों करता रहता है? लड़का: सरमैं गरीब हूं, मेरे पास मोबाइल और वॉट्सएप नहीं है।
 
Hindi Joke 4
 
छगन(दोस्त से) : बढ़तीउम्र के साथ मेरी ताकत बढ़ती जा रही है। दोस्त: कैसे? छगन: आज से दस साल पहले मैं सौ रुपए की शक्कर मुश्किल से उठा पाता था पर अब बिल्कुल आराम से उठा लेता हूं! 

पुलिस और पत्नी में समानताएं


1.ना इनकी दोस्ती अच्छी और ना ही दुश्मनी। 
 
2. इनसे बनाकर रखना मजबूरी है। 
 
3. इनका मूड पता ही नहीं चलता कब बिगड़ जाए। 
 
4. अगर वे प्यार से बात करें तो अलर्ट हो जाएं। 
 
5. दोनों ही खतरनाक धमकी देते हैं। 
 
6. इनसे बहस में जीतना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। 
 
7. ये पिछला हिसाब याद रखते हैं। 
 
8. अपने राज कभी नहीं खोलते। 
 
9. इनको जबर्दस्ती तारीफ चाहिए। 
 
10. सुन भले ही आपकी लें पर करेंगे अपने मन की ही। 
 
11. दोनों ही रौब से काम लेते हैं। 
 
12. इनकी नजर हमेशा आपकी जेब पर रहती है।
 
 सो भाइयों.. जरा बचके इन दोनों बलाओं से। जनहित में जारी!

Monday, September 15, 2014

संसार की रीति

 
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे । जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे । उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । वह संसार की रीति समझ गया । "कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान , लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है "
"जिंदगी आईसक्रीम की तरह है, टेस्ट करो तो भी पिघलती है;.,,,
वेस्ट करो तो भी पिघलती है, इसलिए जिंदगी को टेस्ट करना सीखो, वेस्ट तो हो ही रही है.,,

Sunday, September 7, 2014

2014 वर्ष का पर्व-त्यौहार


पर्व त्यौहार सन् 2014
● विक्रम संवत् 2070 (पौष वदी 30 से माघ सुदी 1 तक)
● राष्ट्रीय शाके 1935 (राष्ट्रीय पौष 11 से राष्ट्रीय माघ 11 तक)
● इस्लामी हिजरी 1435 (सफर 28 से रवि उल अव्वल 29 तक)
● बंगला संवत् 1420 (बंग पौष 18 से बंग माघ 18 तक)

जनवरी

1 जनवरी – नववर्ष 2014 ई. प्रारम्भ, देवपितृ कार्ये अमावस्या, वकुला अमावस्या (उड़ीसा), शहादते इमाम हसन (मु.)
2 जनवरी – चन्द्रदर्शन
3 जनवरी – खिचड़ी महोत्सव (वृंदावन), मु. महीना रवि-उल-अव्वल प्रारम्भ, जोर मेला (पंजाब)
5 जनवरी – गुरु गोविन्दसिंह जयन्ती (नवीनमतानुसार), छप्पन भोग गरुड़ गोविन्द (मथुरा)
7 जनवरी – गुरु गोविन्दसिंह जयन्ती (प्राचीनमतानुसार)
10 जनवरी – शाम्ब दशमी (उड़ीसा)
11 जनवरी – पुत्रदा एकादशी व्रत सर्वेषाम्
12 जनवरी – स्वामी विवेकानन्द जयंती
13 जनवरी – प्रदोष व्रत, लोहड़ी पर्व (पंजाब)
14 जनवरी – मकर संक्रांति, पुण्यकाल दोपहर 13/12 से माघ विहू (असम), गंगा सागर यात्रा प्रारंभ, पोंगल पर्व (केरल)
15 जनवरी – पूर्णिमा व्रत, थल सेना दिवस
16 जनवरी – पौषी पूर्णिमा, माघ स्नान प्रारम्भ, शाकम्भरी जयन्ती
19 जनवरी – संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी (संकट चौथ) चन्द्रो. रा. 20/43, दिव्य दर्शन श्री सिद्ध विनायक (गणेश टीला मथुरा), ईद-ए-मौलाद (वारावफात) (मु.)
21 जनवरी – उर्स हजरत निजामुद्दीन (मु.), राष्ट्रीय माघ प्रारम्भ
23 जनवरी – नेताजी सुभाष बोस जयन्ती, श्रीरामानंदाचार्य जंयती
24 जनवरी – कालाष्टमी
26 जनवरी – 65 वाँ भारतीय गणतंत्र दिवस
27 जनवरी – षटतिला एकादशी व्रत (सर्वे.)
28 जनवरी – प्रदोष व्रत, लाला लाजपतराय जयन्ती
29 जनवरी – मेरू त्रयोदशी, मासिक शिवरात्रि
30 जनवरी – मौनी अमावस्या, मेला प्रयागराज, देवपितृकार्य अमावस्या, शहीद दिवस, गाँधी जी पुण्यतिथि,
31 जनवरी – गुप्त नवरात्रि व्रत प्रारम्भ

फरवरी

1 फरवरी – बाबा रामदेव दौज (राजस्थान), लाल दयाल जयंती, चन्द्रदर्शन (मु.15)
2 फरवरी – गौरी तृतीया व्रत, वरद चतुर्थी
3 फरवरी – वरद चतुर्थी, तिल चतुर्थी
4 फरवरी – बसन्त पंचमी, सरस्वती जयन्ती, निराला जयन्ती, दुर्वासा मेला (मथुरा)
5 फरवरी – शीतला षष्ठी (बंगाल), मंदार छठ
6 फरवरी – रथ सप्तमी, श्री दुर्गाष्टमी, भानु व आरोग्य सप्तमी, श्री नर्मदा जयंती, श्री देव नारायण जयन्ती (गुर्जर समाज)
7 फरवरी – भीमाष्टमी, श्री दुर्गाष्टमी व्रत
8 फरवरी – गुप्त नवरात्र समाप्त, विश्व महिला दिवस
9 फरवरी – श्री राधा दामोदर प्राकट्योत्सव (वृंदावन)
10 फरवरी – जया एकादाशी व्रत (सर्वे), भैनी ग्यारस (बंगाल)
11 फरवरी – भीष्म द्वादशी, वेणेश्वर मेला प्रारम्भ (डुंगरपुर)
12 फरवरी – कुंभ संक्रानित, प्रदोष व्रत, विश्वकर्मा जयन्ती, ग्यारहवीं शरीफ (मु.), मेला पंचखंडपीठ प्रा. (राजस्थान)
13 फरवरी – रामचरण स्नेहीज, शाहापुरा (मेवाड़), ललिता जयन्ती
14 फरवरी – माघी पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत, माघ स्नान समाप्त, संत रविदास जयंती, वेलेनटाइन डे, माही नदी स्नान मेला (राजस्थान)
18 फरवरी – श्री गणेश चतुर्थी व्रत
19 फरवरी – शिवाजी जयन्ती
22 फरवरी – कालाष्टमी, श्रीनाथ जी पाटोत्सव (नाथद्वारा)
23 फरवरी – समर्थ गूरू रामदास जयन्ती
24 फरवरी – महर्षि दयायन्द सरस्वती जयन्ती, समर्थ गुरु रामदास नवमी
25 फरवरी – विजया एकादशी व्रत (स्मार्त)
26 फरवरी – विजया एकादशी व्रत (वैष्णव)
27 फरवरी – श्री महाशिवरात्रि पर्व व व्रत, प्रदोष व्रत, श्री वैधनाथ जयन्ती, मेला राठौरा (रामपुरा, उत्तर प्रदेश)
28 फरवरी – शिव खप्पर पूजा, अमावस्या
28 फरवरी – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

मार्च

1 मार्च – शनैश्चरी अमावस्या, देवपितृकार्य एवं भोला अमावस्या, शिव खप्पर पूजा
2 मार्च – चन्द्रदर्शन
3 मार्च – चन्द्रदर्शन, फुलैरा दौज, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जयंती
4 मार्च – विनायक चतुर्थी
8 मार्च – श्री दुर्गाष्टमी, होलिकाष्टक प्रारम्भ, विश्व महिला दिवस, दादू दयाल जयन्ती
10 मार्च – लट्ठमार होली (बरसाना)
11 मार्च – लट्ठमार होली (नन्दगांव)
12 मार्च – आमलकी एकादशी व्रत, मेला खाटू श्यामजी प्रारम्भ (राजस्थान), रामस्नेही फोलडोल शाहपुरा (मेवाड़), लटठमार होली (मथुरा-वृंदावन)
13 मार्च – गोविन्द द्वाद्वशी
14 मार्च – मीन संक्रानित, शिव प्रदोष व्रत, मेला खाटू श्याम जी
16 मार्च – पूर्णिमा व्रत, होलिका दहन, सायं 7 बजे, फाल्गुन पूर्णिमा, चैतन्य महाप्रभु जयंती
17 मार्च – होली (धुलैड़ी), गणगौरी पूजा (राजस्थान) प्रारम्भ, पंखा मेला झज्जर (हरियाणा), मेला रामधाम खेड़ापा (जोधपुर), विश्व विकलांग दिवस
18 मार्च – संत तुकाराम जयन्ती, श्री रंगजी उत्सव प्रारम्भ (वृंदावन)
20 मार्च – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 22/3)
21 मार्च – रंग पंचमी, शीतला पूजा (बासौड़ा)
22 मार्च – एकनाथ षष्ठी
23 मार्च – श्री शीतला माता पूजन (बासौड़ा) मेला नौचन्दी प्रारम्भ (मेरठ), मेला नाहरपुर (एटा)
24 मार्च – श्री शीतला अष्टमी, बासौड़ा पूजन, श्री ऋषभदेव जयंती, मेला केशरिया (मेवाड़), मेला श्री केला देवी (करौली) प्रारम्भ (राजस्थान), श्री रंगनीरथोत्सव (वृंदावन)
25 मार्च – बुढ़वा मंगल पर्व
26 मार्च – दशमाता व्रत
27 मार्च – पापमोचनी एकादशी व्रत, पंचक 19/50 से प्रारम्भ
28 मार्च – प्रदोष व्रत, रंग तेरस
29 मार्च – मेला पृथुदक पिहोवा (हरियाणा)
30 मार्च – संवत 2070 पूर्ण, देवपितृकार्ये अमावस्या
31 मार्च – नव संवत 2071 प्रारम्भ, चैत्र नवरात्र प्रारम्भ घट स्थापना प्रात: 7 बजे, गुड़ी पड़वा, गौतम जयंती, चेतीचन्द, श्री झूलेलाल जयंती (सिन्धी), डा. हेडगेवार जयन्ती

अप्रैल

1 अप्रैल – बैंक वार्षिक लेखाबंदी, श्रृंगार (सिंधारा) दौज, मूर्ख दिवस, चन्द्रदर्शन, चेटीचंड
2 अप्रैल – मेला गणगौर (जयपुर), उत्सव (उदयपुर), गणगौरी पूजा, मत्स्य जयंती, सरहुल (बिहार), मु. महीना जमादिलाखर प्रारम्भ
4. अप्रैल – श्री पंचमी
5. अप्रैल – स्कंद षष्ठी व्रत, श्री यमुना जयंती, मेला यमुना छठ (मथुरा)
7 अप्रैल – श्री दुर्गाष्टमी, मेला मनसा देवी, मेला नरी सेमरी
8 अप्रैल – श्री दुर्गानवमी, श्रीराम नवमी, नवरात्र समाप्त, लटठ पूजा नरी सेमरी देवी (मथुरा)
9 अप्रैल – धर्मराज दशमी
11 अप्रैल – कामदा एकादशी व्रत (सर्वे.), फूल डोलोत्सव ग्यारस (वृंदावन), फूल बंगला प्रारम्भ श्री बिहारीजी
11 अप्रैल – कामदा एकादशी व्रत, लक्ष्मीकांत डोलोत्सव
12 अप्रैल – प्रदोष व्रत
13 अप्रैल – श्री महावीर स्वामी जयन्ती (जैन)
14 अप्रैल – डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती, पूर्णिमा व्रत, मेष संक्रान्ति, शिव दमनक चर्तुदर्शी, बंगाली सं. 1421 प्रारम्भ
15 अप्रैल – पूर्णिमा व्रत, हनुमान जयन्ती, मेष संक्रान्ति, वैशाखी, चैत्री पूर्णिमा, वैशाख स्नान प्रारम्भ, मेला सालासरधाम बालाजी (राजस्थान)
15 अप्रैल – श्री हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा, मेला सालासर, बालाजी
18 अप्रैल – श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चन्द्रोदय 22/3, गुड फॉइडे
19 अप्रैल – अनुसूया जयन्ती
20 अप्रैल – गुरु तेगबहादुर जयन्ती
22 अप्रैल – बूढ़ा बासौड़ा (शीतला पूजा)
23 अप्रैल – बाबू कुंवर सिंह जयन्ती (बिहार)
25 अप्रैल – वरुथिनी एकादशी व्रत (सर्वे.) श्री बल्लभाचार्य 2817 वीं जयन्ती,
26 अप्रैल – प्रदोष व्रत
27 अप्रैल – मासिक शिवरात्रि व्रत
28 अप्रैल – पितृकार्य अमावस्या, मेला पीपल जातर, कुल्लू (हिमाचल प्रदेश)
29 अप्रैल – देवकार्ये अमावस्या, शुकदेव मुनि जयंती
30 अप्रैल – देव दामोदर तिथि (असम), चन्द्रदर्शन (मु.30)

मई

1 मई – शिवाजी जयन्ती, परशुराम जयन्ती, मजदूर दिवस, मेला ख्वाजा साहब अजमेर शरीफ उर्स प्रारंभ
2 मई – अक्षय तृतीय, चरण दर्शन श्री बांके बिहारी जी (वृंदावन), श्री बद्रीनाथ केदारनाथ दर्शन प्रारम्भ (चारो धाम), सत्तू तीज
4 मई – श्री आद्यशंकराचार्य 1225 वीं जयंती, सूरदास 536 वीं जयंती
5 मई – श्री रामानुजाचार्य जयन्ती
6 मई – गंगा सप्तमी, श्री गंगा जयंती
7 मई – टैगौर जयंती, श्री दुर्गा अष्टमी, श्री बगुलामुखी जयंती, मेला भातृहरि
8 मई – सीता नवमी
10 मई – मोहिनी एकादशी व्रत सर्वेषाम
12 मई – प्रदोष व्रत
12 मई – शिव प्रदोष व्रत
13 मई – श्री नृरसिंह जयन्ती, नृसिंह चौदस, छिन्नमस्ता जयंती, हजरत अली जन्म (मु.)
14 मई – पूर्णिमा व्रत, वृष संक्रान्ति, बुद्ध पूर्णिमा, बुद्ध जयंती, कूर्म जयंती, वैशाख स्नान पूर्ण, देवयानी यात्रा सांभरलेक (राजस्थान), पीपल पूजन, मेला बंजार प्रारम्भ, (कुल्लू) 4 दिन, मेला डुंगरी जातर (मनाली) प्रारंभ 2 दिन
16 मई – नारद जयन्ती, वीणादान, वन विहार परिक्रमा (वृंदावन)
17 मई – गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 21/48)
21 मई – कालाष्टमी
24 मई – अपरा एकादशी व्रत (सर्वे.), भद्रकाली ग्यारस (पं.)
26 मई – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, शब्बे मिराज (मु.)
28 मई – श्री शनि जयंती, देवपितृकार्ये अमावस्या, वट पूजन परिक्रमा कोकिला वन (कोसी) मथुरा, वट सावित्री पूजा, भावुका अमावस्या
29 मई – श्रीगंगा दशहरा मेघ स्नान प्रारंभ
30 मई – चन्द्रदर्शन
31 मई – महाराणा प्रताप जयन्ती, रंभा व्रत, मेला हल्दी घाटी (मेवाड़), मु. महीना सावान प्रारम्भ

जून

3 जून – सांई टेऊराम पुण्य तिथि
4 जून – अरण्य षष्ठी, विन्ध्यावासिनी पूजा, जामित्र षष्ठी
6 जून – श्री दुर्गाष्टमी, धूमावती जयन्ती, मेला क्षीर भवानी (कश्मीर)
7 जून – महेश नवमी (माहेश्वरी समाज)
8 जून – श्री गंगा दशहरा, श्री रामेश्वर प्रतिष्ठा, श्री बटुक भैरव जयन्ती, नौवे गुरु बोहरे (पं.) आचार्य श्रीराम शर्मा जी पुण्य तिथि (मथुरा)
9 जून – निर्जला एकादशी व्रत, मेला खाटू श्यामजी, भैनी ग्यारस
10 जून – प्रदोष व्रत, वट सावित्री प्रारम्भ:
12 जून – पूर्णिमा व्रत
13 जून – संत कबीर जयन्ती, ज्येष्ठ पूर्णिमा, जगन्नाथ जी स्नान यात्रा प्रारम्भ, वट सावित्री व्रत पूर्ण
14 जून – मेला भूंतर (कुल्लू) प्रारम्भ 3 दिन, गुरु हरगोविन्द जयंती, शब्बेरात (मु.)
15 जून – मिथुन संक्रनित
16 जून – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 22/18)
19 जून – कालाष्टमी, पंढरपुरयात्रा (महाराष्ट्र)
20 जून – कालाष्टमी
22 जून – व्यास पुण्यतिथि
23 जून – योगिनी एकादशी व्रत (वैष्णव) देवराह बाबा पुण्य तिथि (वृंदावन)
24 जून – प्रदोष व्रत
25 जून – मासिक शिवरात्रि व्रत
27 जून – देवपितृकार्य अमावस्या
28 जून – गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ
29 जून – श्री जगन्नाथ रथ यात्रा (पुरी), ठाकुरजी रथदर्शन (बल्लभाकुल सम्प्रदार्य मंदिरों में), मनोरथ द्वितीया (बंगाल), चन्द्रदर्शन
30 जून – रमजान पाक रोजे प्रारम्भ (मु.)

जुलाई

1 जुलाई – हेरा पंचमी
2 जुलाई – स्कंद छठ, कौमारिया छठ, सांई टेऊराम जयन्ती
4 जुलाई – विवस्वत् सप्तमी (सूर्य पूजा)
5 जुलाई – श्री दुर्गाष्टमी
6 जुलाई – भडड्ली नवमी
7 जुलाई – आशा दशमी, भड़रिया नौमी, मेला शरीफ भवानी (का.)
8 जुलाई – देवशयनी एकादशी व्रत (सर्वे.), चातुर्मास व्रत प्रा., मेला मुडि़या पूनो, श्री गोवर्धन परिक्रमा प्रारम्भ, दादा मेला (अजमेर)
9 जुलाई – चार्तुमास व्रत प्रारम्भ
10 जुलाई – प्रदोष व्रत, जया पार्वती व्रत
11 जुलाई – पूर्णिमा व्रत
12 जुलाई – गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा, सन्यासी चातुर्मास व्रत प्रारंभ, कोकिल व्रत, वायु परीक्षा, मुडि़या पूनौ मेला गोवर्धन, मेला श्री गोवर्धन परिक्रमा समाप्त
13 जुलाई – नक्त व्रत प्रारम्भ, अशून्य शयन व्रत
15 जुलाई – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 21/40)
16 जुलाई – नागपंचमी (राजस्थान) भैय्या पाँचे, कर्क संक्रान्ति, शहादते हजरत अली (मु.)
22 जुलाई – कामिका एकादशी व्रत (सर्वे.)
24 जुलाई – प्रदोष व्रत
25 जुलाई – मासिक शिवरात्रि व्रत, जुमातुल विदा (मु.)
26 जुलाई – देवीपितृ कार्यो अमावस्या, हरियाली अमावस्या
28 जुलाई – सोमेश्वर पूजन, चन्द्रदर्शन, स्वामी करपात्री जयंती
29 जुलाई – तृतीया व्रत, श्रृंगार (सिंधारा दौज, राजस्थान), ईद-उल-फितर (मीठी ईद), मु. महीना सव्वाल प्रारम्भ
31 जुलाई – हरियाली तीज (स्वर्ण गौरी व्रत), मधुश्रवा तीज, सिंधारा तीज, वरद चतुर्थी, दूर्वा गणपति व्रत, तीज मेला (जयपुर, उदयपुर)

अगस्त

1 अगस्त – कल्की जयन्ती, नाग पंचमी (देशाचारे), तक्षक पूजा, तिलक पुण्यतिथि
2 अगस्त – वर्ण षष्ठी
3 अगस्त – शीतला सप्तमी, गोस्वामी तुलसीदास जयन्ती
4 अगस्त – दुर्गाष्टमी, मेला श्री नयनादेवी व चिन्तपूर्णी
7 अगस्त – पवित्रा एकादशी व्रत (सर्वे.)
8 अगस्त – प्रदोष व्रत, दधिभक्षण त्याग
10 अगस्त – रक्षाबन्धन, श्रावणी पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत, श्री गायत्री जयन्ती, श्री बलभद्र पूजा (उड़ीसा), बंगवाल उत्सव (उत्तराखण्ड), अमरनाथ यात्रा (कश्मीर) संपन्न, संस्कृत दिवस, हयग्रीव जयंती, अमरनाथ दर्शन पूर्णिमा
12 अगस्त – कज्जली (बूढ़ी) तीज, भीमचण्डी देवी जयंती
13 अगस्त – चतुर्थी व्रत
13 अगस्त – चतुर्थी व्रत चन्द्रो. 21/3, सातूड़ी तीज
15 अगस्त – 68 वाँ स्वतंत्रता दिवस, रक्षापंचमी, पंचक 11/03 से समाप्त हलषष्ठी
16 अगस्त – शीतला व्रत, चन्द षष्ठी व्रत
17 अगस्त – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत (सर्वे.), संत ज्ञानेश्वर जयन्ती, आधाकाली जयंती
18 अगस्त – गोगा नवमी, नन्दोत्सव (गोकुल), नंदगाँव
21 अगस्त – अजा एकादशी व्रत (वैष्णव), वत्स पूजा, जैन पयूर्षण
22 अगस्त – प्रदोष व्रत, गोवत्स पूजा
23 अगस्त – मासिक शिवरात्रि व्रत
25 अगस्त – कुशाग्रहणी अमावस्या, सोमती अमावस्या, देवपितृकार्य अमावस्या, सती पूजा, मेला राणी सती (झुझनूं), मेला लोहार्गल स्नान (सीकर)
27 अगस्त – रुणिचा मेला प्रारम्भ (जैलसमेर), बाबारामदेव दौज, चन्द्रदर्शन (मु.45)
28 अगस्त – श्री वराह जयंती, हरितालिका व्रत, मु. महीना जिल्काद प्रारम्भ
29 अगस्त – श्री गणेश चतुर्थी, महोत्सव प्रारम्भ (महाराष्ट्र), डन्डाचौथ, (चन्द्रदर्शन निषेध), पंत जयन्ती
30 अगस्त – ऋषि पंचमी, जैन संवत्सरी
31 अगस्त – सूर्य छठ, ललिता छठ, हल छठ, श्री बलराम जयन्ती, बलदेव छठ (ब्रज मंडल), महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ, मेला हाथरस

सितम्बर

1 सितम्बर – मुक्ताभरण सप्तमी व्रत
2 सितम्बर – श्री राधा अष्टमी (बरसाना), श्री दधीचि जयंती, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण, दुर्गाष्टमी, मेला बरसाना
3 सितम्बर – अदु:ख नवमी व्रत, गौरी पूजन, चन्द्रनवमी, मेला रामदेवजी, नवलदुर्ग
4 सितम्बर – मेला तेजाजी (ब्यावर), मेला रामदेव (जै.) पू.
5 सितम्बर – जलझूलनी एकादशी व्रत (सर्वे.), डा. राधाकृष्णन जयंती (शिक्षक दिवस), मेला चार भूजानाथ जी (मेवाड़), ढोल ग्यारस (मध्य प्रदेश), जलझूलनी एकादशी व्रत
6 सितम्बर – प्रदोष व्रत, वामन जयंती, दुग्ध व्रत
8 सितम्बर – पूर्णिमा व्रत, अनन्त चौदस, कदली व्रत, श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ, पूर्णिमा श्राद्ध, श्रीगणेश विसर्जनम
9 सितम्बर – प्रौष्ठपदी पूर्णिमा, इंदुला पूर्णिमा, महालय श्राद्ध प्रारम्भ, मेला गया जी
10 सितम्बर – द्वितीया श्राद्ध
11 सितम्बर – तृतीया श्राद्ध
12 सितम्बर – श्री गणेश चतुर्थी व्रत चन्द्रोदय 20/3, चतुर्थी श्राद्ध
13 सितम्बर – पंचमी श्राद्ध, कन्या संक्रान्ति
14 सितम्बर – राष्ट्रभाषा हिन्दी दिवस, षष्ठी श्राद्ध
15 सितम्बर – श्रीमहालक्ष्मी व्रत, सप्तमी श्राद्ध
16 सितम्बर – अशोकाष्टमी, जीवित्पुत्रिका व्रत, अष्टमी श्राद्ध
17 सितम्बर – विश्वकर्मा जयन्ती, मातृनवमी, नवमी श्राद्ध (सौभाग्यवतियों का श्राद्ध दिन)
18 सितम्बर – दशमी श्राद्ध
19 सितम्बर – इन्दिरा एकादशी व्रत (सर्वे.), एकादशी श्राद्ध
20 सितम्बर – द्वाद्वशी श्राद्ध, संन्यासिनी श्राद्ध
21 सितम्बर – त्रयोदशी श्राद्ध, प्रदोष व्रत
22 सितम्बर – चतुर्दशी श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि व्रत
23 सितम्बर – सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या, पितृ विसर्जनम्
24 सितम्बर – देवकार्य अमावस्या, नाना-नानी श्राद्ध दिन
25 सितम्बर – शरदीय नवरात्र व्रत प्रारम्भ, घट स्थापना, श्री अग्रसेन जयंती, मेला तारा देवी, बगलामुखी देवी (हिमाचल प्रदेश)
26 सितम्बर – चन्द्रदर्शन
27 सितम्बर – चतुर्थी व्रत, मु. महीना जिल्हेज प्रारम्भ
29 सितम्बर – उपांग ललिता व्रत
30 सितम्बर – बैंक अर्ध-वार्षिक लेखा बन्दी

अक्टूबर

1 अक्टूबर – सरस्वती पूजा
2 अक्टूबर – महाष्टमी, गांधी जयन्ती, शास्त्री जयन्ती, दुर्गाष्टमी, भद्रकाली जयन्ती, सरस्वती बलिदान
3 अक्टूबर – श्रीराम नवमी, दुर्गा नवमी, सरस्वती विसर्जन, नवरात्र समाप्त, शस्त्र पूजा, शमी पूजा
4 अक्टूबर – पापांकुशा एकादशी व्रत (स्मार्त), पंचक 29/11 से प्रारम्भ
5 अक्टूबर – पापांकुशा एकादशी व्रत (वैष्णव), भरत मिलाप, ब्रज यात्रा प्रारम्भ
6 अक्टूबर – शिव प्रदोष व्रत, ईद-उल-जूहा (बकरीद) (मु.)
7 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत कोजागरी व्रत (लक्ष्मी-कुबेर पूजा), मेला शाकम्भरी देवी, व्रत पूर्णिमा
8 अक्टूबर – पूर्णिमा, कार्तिक स्नान प्रारम्भ, श्री बाल्मीकि जयंती, खग्रास चन्द्र ग्रहण, मारवाड उत्सव (जोधपुर)
9 अक्टूबर – पंचक 7/17 पर समाप्त
11 अक्टूबर – करवाचौथ चन्द्रोदय 20//29, करक चतुर्थी व्रत, दशरथ ललिता व्रत
13 अक्टूबर – स्कंद षष्ठी
15 अक्टूबर – अहोई अष्टमी, राधाकुण्ड स्नान (गोवर्धन)
17 अक्टूबर – तुला संक्रांति
19 अक्टूबर – रमा एकादशी व्रत (सर्वे.)
20 अक्टूबर – गोवत्स द्वादशी
21 अक्टूबर – प्रदोष व्रत, धनतेरस, धन्वतंरी जयंती
22 अक्टूबर – छोटी दीपावली, मासिक शिवरात्रि व्रत, दीपदान, नरक चौदस, रूप चौदस, यमतर्पण
23 अक्टूबर – दीपावली, देवपितृकार्ये अमावस्या, श्री महालक्ष्मी व कुबेर पूजा, श्री कमला जयंती, श्री महाकाली जयंती
24 अक्टूबर – श्री गोवर्धन पूजा (अन्नकूटोत्सव), गुजराती नव सं., मेला बटेश्वर प्रारम्भ (आगरा) 15 दिन, बलि पूजा
25 अक्टूबर – भैया दूज (यम द्वितीया) यमुना स्नान (मथुरा), विश्वकर्मा पूजा
26 अक्टूबर – मौर्हरम हिजरी 1436 ई. प्रारम्भ
27 अक्टूबर – दूर्वा गणपति व्रत, छठ मेला प्रारंभ (बिहार)
28 अक्टूबर – सौभाग्य पंचमी, पाण्डव पंचमी, सूर्यछठ
29 अक्टूबर – सूर्य षष्ठी, छठ पूजा (बिहार)
31 अक्टूबर – श्री गोपाष्टमी, दुर्गाष्टमी, गौ पूजा

नवम्बर

1 नवम्बर – अक्षय नवमी, कुष्मांड नवमी, जुगल जोड़ी परिक्रमा (मथुरा-वृंदावन)
2 नवम्बर – कंस वध मेला (मथुरा)
3 नवम्बर – देव प्रबोधिनी एकादशी (देवठान), तुलसी विवाह, भीष्म पंचक प्रारम्भ, तीन वन परिक्रमा (मथुरा), मेला पुष्कर प्रारम्भ
4 नवम्बर – प्रदोष व्रत, मोहर्रम (ताजिया दफन), कालीदास जयंती, मेला खाटू श्यामजी (राजस्थान)
5 नवम्बर – बैकुण्ठ चौदस
6 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा व व्रत, कार्तिक स्नान समाप्त, गुरु नानक जयंती, मेला रामतीर्थ (हिमाचल प्रदेश), मेला गढगंगा, मेला कपाल मोचन (हरियाणा), भीष्म पंचक समाप्त, मेला पुष्कर पूर्ण
10 नवम्बर – श्री गणेश चतुथी व्रत, चन्द्रोदय 20/40
11 नवम्बर – श्री सत्यसांई जयंती
12 नवम्बर – गुरुतेग बहादुर शहीद दिवस
14 नवम्बर – काल भैरवाष्टमी, बालदिवस (पं. नेहरू जयन्ती)
16 नवम्बर – वृश्चिक संक्रान्ति, श्रीजम्भोनीपु.ति. (बि.समाज)
18 नवम्बर – उत्पत्ति एकादशी व्रत (सर्वे.), वैतरणी व्रत
20 नवम्बर – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
22 नवम्बर – देवपितृ अमावस्या, श्रीबालाजी जयंती, मेला पुरमण्डल देविका स्नान (का.), श्री मल्लारी भैरव षटरात्र प्रारम्भ
24 नवम्बर – चंद्रदर्शन
25 नवम्बर – चतुर्थी व्रत, रम्भा तीज व्रत
27 नवम्बर – नागपंचमी, स्कंदषष्ठी, बिहारी पंचमी (श्री बांके बिहारीजी प्राकट्योत्सव) श्री रामजानकी विवाहोत्सव
28 नवम्बर – स्कन्द व चम्पा षष्ठी, मित्र 7, नरसी मेहता जयन्ती
30 नवम्बर – पं. बावलिया पुण्य तिथि (चिड़ावा)

दिसम्बर

2 दिसम्बर – मोक्षदा एकादशी व्रत (सर्वे.) गीता जयन्ती, श्री घालदास जयंती, रामधाम खेड़ापा (जोधपुर)
3 दिसम्बर – अखण्ड द्वादशी
4 दिसम्बर – प्रदोष व्रत, अनंग त्रयोदशी
5 दिसम्बर – पिशाच मोचन श्राद्ध, पूर्णिमा व्रत, गुरु दत्तात्रेय जयंती
6 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा, श्री अन्नपूर्णा जयंती, श्री विधा जयंती, श्री त्रिपुर सुन्दरी जयन्ती, डा अम्बेडकर पुण्य तिथि
7 दिसम्बर – झण्डा दिवस
9 दिसम्बर – श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चन्द्रोदय 20/15
11 दिसम्बर – स्वामी करपात्री जी जयंती
13 दिसम्बर – चेहल्लुम (मु.)
16 दिसम्बर – धनु संक्रान्ति, खरमास प्रारम्भ
18 दिसम्बर – सफला एकादशी व्रत (सर्वे.), स्वरूप द्वादसी
19 दिसम्बर – प्रदोष व्रत
20 दिसम्बर – मासिक शिवरात्रि व्रत
21 दिसम्बर – देवपितकार्ये अमावस्या, वकुला अमावस्या
23 दिसम्बर – खिचड़ी महोत्सव (वृंदावन), चन्द्रदर्शन (मु.45)
24 दिसम्बर – मु. महीना रविलावल प्रारम्भ
25 दिसम्बर – क्रिसमिस-डे (बड़ा दिन), ईसा मसीह जयंती
26 दिसम्बर – छप्पन भोग गरुण गोविन्द (मथुरा)
28 दिसम्बर – गुरु गोविन्दसिहं जयंती (प्राचीनमतानुसार)
29 दिसम्बर – दुर्गाष्टमी व्रत
30 दिसम्बर – शाम्ब दशमी
31 दिसम्बर – 2015 नववर्ष पूर्व संध्या

श्री मेंहदीपुर बालाजी


राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है । भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले लगभग एक हजार रोगी और उनके स्वजन यहां नित्य ही डेरा डाले रहते हैं ।

बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें घाटे वाले बाबा जी भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है । इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है, जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है । यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्त्जन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं । यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है किन्तु मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है । मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे । वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा । ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था । ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया । इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है । बालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियां भी हैं । प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर । यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य को कष्ट पहुंचाते हैं और किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है । दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुंचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है । बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है । इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं । प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है । लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है और भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है । कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है । कभी बालाजी के इशारे पर पेड़ पर उल्टा लटक जाता है । कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है । कभी फ़ांसी या सूली पर लटक जाता है । मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं । बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं। संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है । बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है । पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है। इस समय भक्तगण जहां पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं ।

श्री प्रेतराज सरकार

बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है । भक्ति-भाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं । बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है।

पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं।
कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है, इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।

किसी ने सच ही कहा है, नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं, मेंहदीपुर दरबार में ।
प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है, किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं और प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।

कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव

कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं । भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं । उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है ।
शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं । भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के वड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं ।

सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं, जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।
कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं , जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि, नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं ।

Wednesday, September 3, 2014

दिगंबर शिव


दिगंबर शब्द का अर्थ है अंबर (आकाश) को वस्त्र सामान धारण करने वाला। दुसरे किसी वस्त्र के आभाव में इसका अर्थ ( या शायद अनर्थ ) यह भी निकलता है कि जो वस्त्र हिन हो (अथवा नग्न हो)। सही अर्थों में दिगंबर शिव के सर्वव्यापत चरीत्र की ओर इंगित करता है। शिव ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। यह अनंत अम्बर शिव के वस्त्र सामान हैं।

शिव का एक नाम व्योमकेश भी है जिसका अर्थ है जिनके बाल आकाश को छूतें हों। इनका यह नाम एक बार फिर से उनके सर्वव्यापक चरीत्र की ओर ही इशारा करती है।

शिव सर्वेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान तथा विधाता होने के बाद भी वे अत्यंत ही सरल हैं – भोलेनाथ हैं। वे शिघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें प्रसनन करने के लिए किसी जटील विधान अथवा आडंबर की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे तो भक्ति मात्र देखतें हैं। कोई भी किसी मार्ग द्वारा शिव को प्राप्त कर सकता है।

शिव देवाधिदेव हैं, पर उनमें कोई आडंबर नहीं है, वे सरल हैं, वस्त्र के स्थान पे बाघंबर, आभुषण के नाम पर सर्प और मुण्ड माल, श्रृंगार के नाम भस्म यही उनकी पहचान है| गिरीश योगी मुद्रा में कैलाश पर्वत पर योग में नित निरत रहते हैं| भक्तों के हर प्रकार के प्रसाद को ग्रहण करने वाले महादेव बिना किसी बनावट और दिखावा के होने के कारण दिगंबर कहे जाते हैं|

Wednesday, July 9, 2014

कुण्डलिनी शक्ति


परमपिता का अर्द्धनारीश्वर भाग शक्ति कहलाता है यह ईश्वर की पराशक्ति है (प्रबल लौकिक ऊर्जा शक्ति)। जिसे हम राधा, सीता, दुर्गा या काली आदि के नाम से पूजते हैं। इसे ही भारतीय योगदर्शन में कुण्डलिनी कहा गया है। यह दिव्य शक्ति मानव शरीर में मूलाधार में (रीढ की हड्डी का निचला हिस्सा) सुषुप्तावस्था में रहती है। यह रीढ की हड्डी के आखिरी हिस्से के चारों ओर साढे तीन आँटे लगाकर कुण्डली मारे सोए हुए सांप की तरह सोई रहती है। इसीलिए यह कुण्डलिनी कहलाती है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है तो यह सहस्त्रार में स्थित अपने स्वामी से मिलने के लिये ऊपर की ओर उठती है। जागृत कुण्डलिनी पर समर्थ सद्गुरू का पूर्ण नियंत्रण होता है, वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं। गुरुकृपा रूपी शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर ६ चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है। कुण्डलिनी द्वारा जो योग करवाया जाता है उससे मनुष्य के सभी अंग पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। साधक का जो अंग बीमार या कमजोर होता है मात्र उसी की यौगिक क्रियायें ध्यानावस्था में होती हैं एवं कुण्डलिनी शक्ति उसी बीमार अंग का योग करवाकर उसे पूर्ण स्वस्थ कर देती है। इससे मानव शरीर पूर्णतः रोगमुक्त हो जाता है तथा साधक ऊर्जा युक्त होकर आगे की आध्यात्मिक यात्रा हेतु तैयार हो जाता है। शरीर के रोग मुक्त होने के सिद्धयोग ध्यान के दौरान जो बाह्य लक्षण हैं उनमें यौगिक क्रियाऐं जैसे दायं-बायें हिलना, कम्पन, झुकना, लेटना, रोना, हंसना, सिर का तेजी से धूमना, ताली बजाना, हाथों एवं शरीर की अनियंत्रित गतियाँ, तेज रोशनी या रंग दिखाई देना या अन्य कोई आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम की स्थिति आदि मुख्यतः होती हैं ।

मानव शरीर आत्मा का भौतिक घरहमारे ऋषियों ने गहन शोध के बाद इस सिद्धान्त को स्वीकार किया कि जो ब्रह्माण्ड में है, वही सब कुछ पिण्ड (शरीर) में है। इस प्रकार मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक का जगत माया का और आज्ञा चक्र से लेकर सहस्त्रार तक का जगत परब्रह्म का है।वैदिक ग्रन्थों में लिखा है कि मानव शरीर आत्मा का भौतिक घर मात्र है। आत्मा सात प्रकार के कोषों से ढकी हुई हैः- १- अन्नमय कोष (द्रव्य, भौतिक शरीर के रूप में जो भोजन करने से स्थिर रहता है), २- प्राणामय कोष (जीवन शक्ति), ३- मनोमय कोष (मस्तिष्क जो स्पष्टतः बुद्धि से भिन्न है), ४- विज्ञानमय कोष (बुद्धिमत्ता), ५- आनन्दमय कोष (आनन्द या अक्षय आनन्द जो शरीर या दिमाग से सम्बन्धित नहीं होता), ६- चित्मय कोष (आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता) तथा ७- सत्मय कोष (अन्तिम अवस्था जो अनन्त के साथ मिल जाती है)। मनुष्य के आध्यात्मिक रूप से पूर्ण विकसित होने के लिये सातों कोषों का पूर्ण विकास होना अति आवश्यक है।प्रथम चार कोष जो मानवता में चेतन हो चुके हैं शेष तीन आध्यात्मिक कोश जो मानवता में चेतन होना बाकी हैं उपरोक्त सातों काषों के पूर्ण विकास को ही ध्यान में रखकर महर्षि श्री अरविन्द ने भविष्यवाणी की है कि “आगामी मानव जाति दिव्य शरीर (देह) धारण करेगी”।श्री अरविन्द ने अपनी फ्रैन्च सहयोगी शिष्या के साथ, जो माँ के नाम से जानी जाती थीं, अपनी ध्यान की अवस्थाओं के दौरान यह महसूस किया कि अन्तिम विकास केवल तभी हो सकता है जब लौकिक चेतना (जिसे उन्होंने कृष्ण की अधिमानसिक शक्ति कहा है) पृथ्वी पर अवतरित हो।साधक की कुण्डलिनी चेतन होकर सहस्त्रार में लय हो जाती है, इसी को मोक्ष कहा गया है।

साधना विधि

रोज सुबह ब्रम्ह-मुहूर्त मे स्नान आदि क्रियाओसे निवृत्त होकर पूर्व दिशा की और मुख करके गुरुमंत्र,चेतना मंत्र,गायत्री मंत्र का जाप करे माला स्फटिक/रुद्राक्ष का होना चाहिये आसान,वस्त्र पीले/लाल रंग के हो,यह सारी क्रिया होने के बाद 9-10 मिनट तक कुंडलिनी के प्रत्येक चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना है और इस तरहा से रोज ध्यान के क्रिया का समय आगे बढ़ाना है,ध्यान क्रिया के बाद नित्य 1 माला तन्त्रोक्तकुंडलिनी जागरण मंत्र का जाप प्रारम्भ करना है,अभी तो गर्मी के दिन चल रहे है इसलिये 1 ही माला करे,जब गर्मी के दिन समाप्त होने लगेगे तो आप इस मंत्र का ज्यादा-से-ज्यादा माला मंत्र जाप कर सकते है॰
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